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Words are world

Tuesday, May 15, 2012

ओलिवर गोल्डस्मिथ - मास्टरजी

[ अठारहवीं सदी के अंग्रेजी भाषा के एक प्रसिद्ध कवि ओलिवर गोल्डस्मिथ की एक मशहूर कविता थी - विलेज स्कूल मास्टर . उसी कविता को थोड़े भारतीय परिपेक्ष्य में प्रस्तुत कर रह हूँ , हिंदी में . कविता के नीचे प्रस्तुत है मूल अंग्रेजी की कविता भी . पढ़ कर प्रतिक्रिया जरूर देवें .  ]

    मास्टरजी


एक कच्चे मकान में बसा
गाँव का वो स्कूल
जिसके अहाते में लगे थे
रंग बिरंगे फूल

पढ़ते थे गाँव के बच्चे
यहाँ आकर हर रोज
खेल कूद मस्ती
और खूब मौज

पढ़ाते थे उनको
एक बूढ़े से मास्टरजी
भूगोल इतिहास हिंदी
गणित और अंग्रेजी

कभी थे नरम
कभी थे कठोर
डरते थे उनसे
पढने के चोर

जिस दिन होता उनका 
मूड कुछ ख़राब
लड़के फुसफुसाते
गुस्से में है जनाब

उनको हंसाते
किस्से सुनाते
नकली हंसी हँसते
जब मास्टरजी सुनाते 

गाँव सारा मानता था
उनको धुरंधर
उन सा नहीं था कोई
गाँव के अन्दर

क्या लिखना क्या पढना
जोड़ना घटाना
खेतों के बीघे
नाप कर बताना

बातों में उनका
नहीं कोई सानी
तर्क करने में
थे वो लासानी

करते थे सारे
आश्चार्य इतना
छोटी सी खोपड़ी में
ज्ञान भरा कितना

जब तक रहे, किया
एकछत्र शासन
हो गए रिटायर
ख़त्म अनुशासन


The Village Schoolmaster

Beside yon straggling fence that skirts the वे
With blossom'd furze unprofitably gay,
There, in his noisy mansion, skill'd to rule,
The village master taught his little school;
A man severe he was, and stern to view,
I knew him well, and every truant knew;
Well had the boding tremblers learn'd to trace
The days disasters in his morning face;
Full well they laugh'd with counterfeited glee,
At all his jokes, for many a joke had he:
Full well the busy whisper, circling round,
Convey'd the dismal tidings when he frown'd:
Yet he was kind; or if severe in aught,
The love he bore to learning was in fault.
The village all declar'd how much he knew;
'Twas certain he could write, and cipher too:
Lands he could measure, terms and tides presage,
And e'en the story ran that he could gauge.
In arguing too, the parson own'd his skill,
For e'en though vanquish'd he could argue still;
While words of learned length and thund'ring sound
Amazed the gazing rustics rang'd around;
And still they gaz'd and still the wonder grew,
That one small head could carry all he knew.
But past is all his fame. The very spot
Where many a time he triumph'd is forgot.

1 comment:

  1. क्या इस कविता को मैं अपनी पत्रिका के लिए उपयोग कर सकता हूँ? अंत में महेन्द्र आर्य ब्लॉग का उल्लेख जरुर होगा. मेरा ईमेल -
    vishwagatha@gmail.com

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