Books For Mind

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Words are world

Wednesday, May 23, 2012

जॉन क्लेयर - पहला प्यार

पहला प्यार

उस क्षण के पहले कभी नहीं छुआ
किसी के प्रेम ने इतना अचानक, इतना मधुर
उसका सुन्दर चेहरा फूल सा खिलता हुआ
मेरे ह्रदय को  उड़ा ले गया जाने किधर

 
मेरा चेहरा जर्द हो गया , बिलकुल जर्द
मेरे पैरों ने जैसे की जवाब दे दिया
और जब उसने देखा मुझे - इतना जर्द इतना सर्द
मेरे तन को जैसे की मिटटी का कर दिया  

 और फिर मेरे चेहरे पर चढ़ी रक्त की लाली
और मेरी दृष्टि जाने कहाँ खो गयी
सारे पेड़ पौधे और हरियाली
दोपहर में भी लगा जैसे मध्यरात्रि हो गयी 

 और  मुझे कुछ नहीं दिख रहा था पर
जैसे   मेरी आँखों से फूट पड़े शब्द
ऐसे निकले जैसे की साज के तारों के स्वर 
और गरम खून से ह्रदय हुआ दग्ध

  क्या पुष्प का चयन करती है सर्दियों की रातें  
क्या प्रेम की शैय्या होती है मखमली बर्फ
लगा जैसे वो सुन रही थी मेरी खामोश बातें
प्रेम नहीं जानता या पढता ये सारे हर्फ़

मैंने नहीं देखा कभी उतना सुन्दर कोई चेहरा
जैसा की उस दिन देखा था मैंने
 ह्रदय अपनी जगह पर नहीं तब से मेरा
लगता है जैसे  उसे खो दिया है मैंने  

जॉन क्लेयर

First Love
~
I ne'er was struck before that hour
With love so sudden and so sweet.
Her face it bloomed like a sweet flower 
And stole my heart away complete. 

My face turned pale, a deadly pale.
My legs refused to walk away,
And when she looked what could I ail
My life and all seemed turned to clay. 

And then my blood rushed to my face 
And took my eyesight quite away.
The trees and bushes round the place 
Seemed midnight at noonday.

I could not see a single thing,
Words from my eyes did start.
They spoke as chords do from the string,
And blood burnt round my heart. 

Are flowers the winter's choice
Is love's bed always snow
She seemed to hear my silent voice 
Not love appeals to know.

I never saw so sweet a face
As that I stood before.
My heart has left its dwelling place
And can return no more.

- John Clare

Wednesday, May 16, 2012

लोर्ड बायरन - जुदाई का क्षण


 जुदाई का क्षण

जब हम तुम हुए जुदा
ख़ामोशी और आंसुओं को जिए
टूटे हुए दिलों ने दी विदा
वर्षों अलग रहने के लिए
बेरंग थे तुम्हारे गाल , बिलकुल सर्द
ठंडा था वो चुम्बन
सचमुच वो क्षण कह गया सब दर्द
दुःख के साथ टूटा बंधन

सुबह सुबह की शबनम  
मेरी भोहों पर छोड़ गयी ठण्ड
चेतावनी सी थी वो इक दम
जो मैं भुगत रहा हूँ दंड
टूट गए तुम्हारे वादे
हलकी हुई तुम्हारी निष्ठां  
नाम जब भी सुनता हूँतुम्हारी यादें 
शर्मसार होती है तुम्हारी प्रतिष्ठा  

वो जब नाम लेते हैं तुम्हारा मेरे आगे
चुभती है  मृत्यु उद्घोषक घंटियों  सी मुझे
एक सिहरन सी तन में जागे
 आखिर क्यों तुम इतने प्रिय थे मुझे
वो नहीं जानते की मैं जानता था तुम्हे
वो लोग जो तुम्हे जानते थे ठीक से
हमेशा हमेशा ही दुःख रहेगा मुझे
इतना गहरा कि बता भी सकूं ठीक से

गुप्त रूप से हम मिले - 
बिताता हूँख़ामोशी में अपना दुःख 
फिर कैसे तुम सब कुछ भूले
कैसे तुम्हारी आत्मा ने दिया धोखा और दुःख
मिला फिर कभी अगर तुम को  
जाने कितने वर्षों के बाद
मैं कैसे करूँ संबोधित तुमको 
उसी ख़ामोशी और आंसुओं के साथ

When We Two Parted  
by Lord Byron

When we two parted
In silence and tears,
Half broken-hearted,
To sever for years,
Pale grew thy cheek and cold,
Colder thy kiss;
Truly that hour foretold
Sorrow to this.


The dew of the morning
Sank chill on my brow—
It felt like the warning
Of what I feel now.
Thy vows are all broken,
And light is thy fame:
I hear thy name spoken,
And share in its shame.


They name thee before me,
A knell to mine ear;
A shudder comes o'er me—
Why wert thou so dear?
They know not I knew thee,
Who knew thee too well:—
Long, long shall I rue thee
Too deeply to tell.


In secret we met—
In silence I grieve
That thy heart could forget,
Thy spirit deceive.
If I should meet thee
After long years,
How should I greet thee?—
With silence and tears. 

Tuesday, May 15, 2012

ओलिवर गोल्डस्मिथ - मास्टरजी

[ अठारहवीं सदी के अंग्रेजी भाषा के एक प्रसिद्ध कवि ओलिवर गोल्डस्मिथ की एक मशहूर कविता थी - विलेज स्कूल मास्टर . उसी कविता को थोड़े भारतीय परिपेक्ष्य में प्रस्तुत कर रह हूँ , हिंदी में . कविता के नीचे प्रस्तुत है मूल अंग्रेजी की कविता भी . पढ़ कर प्रतिक्रिया जरूर देवें .  ]

    मास्टरजी


एक कच्चे मकान में बसा
गाँव का वो स्कूल
जिसके अहाते में लगे थे
रंग बिरंगे फूल

पढ़ते थे गाँव के बच्चे
यहाँ आकर हर रोज
खेल कूद मस्ती
और खूब मौज

पढ़ाते थे उनको
एक बूढ़े से मास्टरजी
भूगोल इतिहास हिंदी
गणित और अंग्रेजी

कभी थे नरम
कभी थे कठोर
डरते थे उनसे
पढने के चोर

जिस दिन होता उनका 
मूड कुछ ख़राब
लड़के फुसफुसाते
गुस्से में है जनाब

उनको हंसाते
किस्से सुनाते
नकली हंसी हँसते
जब मास्टरजी सुनाते 

गाँव सारा मानता था
उनको धुरंधर
उन सा नहीं था कोई
गाँव के अन्दर

क्या लिखना क्या पढना
जोड़ना घटाना
खेतों के बीघे
नाप कर बताना

बातों में उनका
नहीं कोई सानी
तर्क करने में
थे वो लासानी

करते थे सारे
आश्चार्य इतना
छोटी सी खोपड़ी में
ज्ञान भरा कितना

जब तक रहे, किया
एकछत्र शासन
हो गए रिटायर
ख़त्म अनुशासन


The Village Schoolmaster

Beside yon straggling fence that skirts the वे
With blossom'd furze unprofitably gay,
There, in his noisy mansion, skill'd to rule,
The village master taught his little school;
A man severe he was, and stern to view,
I knew him well, and every truant knew;
Well had the boding tremblers learn'd to trace
The days disasters in his morning face;
Full well they laugh'd with counterfeited glee,
At all his jokes, for many a joke had he:
Full well the busy whisper, circling round,
Convey'd the dismal tidings when he frown'd:
Yet he was kind; or if severe in aught,
The love he bore to learning was in fault.
The village all declar'd how much he knew;
'Twas certain he could write, and cipher too:
Lands he could measure, terms and tides presage,
And e'en the story ran that he could gauge.
In arguing too, the parson own'd his skill,
For e'en though vanquish'd he could argue still;
While words of learned length and thund'ring sound
Amazed the gazing rustics rang'd around;
And still they gaz'd and still the wonder grew,
That one small head could carry all he knew.
But past is all his fame. The very spot
Where many a time he triumph'd is forgot.

रॉबर्ट फ्रोस्ट - अनचुना रस्ता

अनचुना रस्ता
( अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि रॉबर्ट  फ्रोस्ट की मशहूर कविता का हिंदी अनुवाद )

उस जंगल से जाते थे  दो रस्ते 
हाय, मैं दोनों पर नहीं जा सकता था 
और एक यात्री की तरह देखता था वो रस्ते 
फिर एक रस्ते को देखा दूर तक, अहिस्ते अहिस्ते 
जहाँ वो मुड कर कहीं नीचे जा सकता था 

फिर वैसे ही नजर उठा कर देखा दूसरा रस्ता
जो शायद कुछ ज्यादा जंच रहा था
क्योंकि  ज्यादा हरा और कम दलित था वो रस्ता
जहाँ तक सवाल था चुनने का एक रस्ता 
एक से ही थे , मन में ये जंच रहा था    

और उस सुबह दोनों रस्तों में से एक को चुनना था 
दोनों रस्तों पर पड़ी पत्तियां कलुषाई नहीं थी 
मैंने  पहले को भविष्य के लिए छोड़ , उस दिन नहीं चुना था
कोई भी रस्ता कैसे कहीं जा पहुँचता है , ये सुना था 
कभी यहाँ वापस आऊँगा , ये उम्मीद भी नहीं थी  

आज ये बताता हूँ एक निःश्वास के साथ तुम्हे 
आज उस बात को बीत गयी उम्रे दराज  
दो अलग अलग रस्ते दिखे  एक जंगल में मुझे 
जो रस्ता कम दला गया था, मैंने चुना था उसे
और शायद उसी निर्णय का परिणाम है मेरा आज   


The Road Not Taken
Two roads diverged in a yellow wood,
And sorry I could not travel both
And be one traveler, long I stood
And looked down one as far as I could
To where it bent in the undergrowth;



Then took the other, as just as fair,
And having perhaps the better claim
Because it was grassy and wanted wear,
Though as for that the passing there
Had worn them really about the same,



And both that morning equally lay
In leaves no step had trodden black.
Oh, I marked the first for another day!
Yet knowing how
 way leads on to way
I doubted if I should ever come back.



I shall be telling this with a sigh
Somewhere ages and ages hence:
Two roads diverged in a wood, and I,
I took the one less traveled by,
And that has made all the difference.
 


Robert Frost